शुक्रवार, 8 मार्च 2013

मैं दीपक बन जाऊँ - कवि फतहपाल सिंह

मैं दीपक बन जाऊँ !
जीर्ण कुटी के अन्धकार में, अपना राग सुनाऊँ
दृष्टि-पथ बन जाये जीवन,
ज्योतित कर दूं जग का कन-कन
ऐसी ज्योति जलाऊँ,
मैं दीपक बन जाऊँ !
राग भरे नव शिशु का जीवन,
आल्हादक हो मेरा तन-मन
प्रेम का राग सुनाऊँ
मैं दीपक बन जाऊँ !
भटक गया हो तम में जीवन,
ज्ञान ज्याति से भर दूं मैं मन
अपना कर्म निभाऊँ
मैं दीपक बन जाऊँ !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें