सोमवार, 22 अप्रैल 2013

इन आँखों में कैसे कैसे मंज़र लेकर निकले हैं.


-अशोक रावत

ज़ख़मों पर रख देंगे जो नौसादर ले कर निकले हैं,
राहबरों की मंशा क्या है ख़ंजर लेकर निकले हैं.

कापी पुस्तक छोड़ गये हैं सोच रहे हैं क्या होगा,
आज सुबह बच्चे बस्तों में पत्त्थर लेकर निकले हैं.

हम से मत पूछो जब अपनी बस्तीसे बहर निकले,
इन आँखों में कैसे कैसे मंज़र लेकर निकले हैं.

जाने क्या होनेवाला है अम्न चाहनेवाले भी,
जब भी घर से बाहर निकले ख़ंजर लेकर निकले हैं.

थोड़ी दूर चलेंगे फिर ये अपनी पर आजायेंगे,
अपने साथ उसूलों का जो लश्कर लेकर निकले हैं.

राह बदलते मिल जायेंगे अगले ही चौराहे पर,
जो भी ज़ेहन में गाँधी और जवाहर लेकर निकले हैं.

फिर भी यूँ लगता है जैसे मंज़िल कोई दूर नहीं,
हम चाहे परवाज़ों पर टूटे पर लेकर निकले हैं.

नारी सृष्टि रचेता है


 -चन्द्रवीर सिंह चन्द्र

सिकन्दराराव 9690188437

सृष्टि रचेता की सृष्टि में
नारी सृष्टि रचेता है
मानव जीवन-यापन की वह
अद्भुत जीवन रेखा है

हर युग में नारी की पूजा
वेदों ने दर्शाई है
देवों ने सम्मान किया
नारी में देख भलाई है

यों तो अत्याचार जगत में
हर युग में होते आये हैं
लेकिन अत्याचारी भी तब-
तब दण्डित होते आये है

आज कलियुगी शासन है
जो मूक बना बैठा रहता है
सरेआम नारी की अस्मत
लूट दरिन्दे जाते हैं

नेता को कुर्सी का लालच
अधिकारी को धन का लालच
दो-दो चेहरे लगा के सब
कानून का पाठ पढ़ाते हैं

अपराधी अपराध कर रहा
बेकसूर बतलाते हैं
सत्यमेव जयते का नारा
फिर भी लोग लगाते हैं